Natasha

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डार्क हॉर्स

बिजली की फुर्ती से इस तरह उस पार हुआ जैसे नाथुला दर्रा हो, जो बस एक पल के लिए खुला है और फिर तुरंत बंद हो गया तो पता नहीं कब तक इसी पार चीन में रहना होगा। हड़बड़ाहट में अपना बैग उसने इसी पार छोड़ दिया। संतोष गेट के उस पार से अपने बैग को ऐसे देखने लगा जैसे गदर फिल्म में सन्नी देओल ने सीमा पार अमीषा पटेल को देखा था। उसे लगा मेरा बैग अब उसी पार रह जाएगा। तब तक एक व्यक्ति ने उसका बैग उसे पकड़ाया। उसे अब जाकर चैन मिला विश्वविद्यालय जाने वाली मेट्रो आ गई, दरवाजा खुलते ही कोई तीन-चार व्यक्ति नीचे उतरे और लगभग दो-ढाई सौ लोग उसपर सवार हो गए। संतोष भी लटक-झटककर चढ़ गया सोच रहा था कि जब से ट्रेन से उतरा हूँ साला एक मिनट का चैन नहीं है। हर जगह समस्या है। कहीं शांति नाम का चीज नहीं है। कहाँ मराने आ गए। सब कहे थे मेट्रो मै आराम है। झांट आराम है इसमें, कटहल के जैसा आदमी लोड है। सोचते-सोचते वह अब विश्वविद्यालय स्टेशन पहुँच चुका था। मेट्रो से बाहर आ उसने एक आदमी से पूछा, "हैलो, ये मुखर्जी नगर बत्रा चौक के लिए कहाँ से ऑटो मिलेगा?"

"वो सामने से मिल रहा है, पकड़ लो।" उस आदमी ने कहा ऑटो पर बैठते ही संतोष ने ऑटो वाले से कहा, "भइया मुखर्जी नगर बत्रा चौक पर रोक दीजिएगा।" "टेंशन मत लो भई वहीं तक जाएगी।" ऑटो वाले ने बेफिक्र अंदाज में कहा और फुल वॉल्यूम में पंजाबी गाना बजाने लगा। अगले दस मिनट बाद संतोष मुखर्जी नगर के

बता सिनेमा के सामने खड़ा था। चंद्रयान चाँद पर पहुँच चुका था।

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